नई दिल्ली (8 अक्टूबर):एक चौंकाने वाली जानकारी से पता चला है कि चार वर्ष (2009-13) में देश के 11 परमाणु वैज्ञानिकों की संदिग्ध हालात में मौत हुई। डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी की तरफ से उपलब्ध ताजा आंकड़ों से ये जानकारी मिली है।
रिपोर्ट के मुताबिक, विभाग की प्रयोगशालाओं और रीसर्च सेंटर्स में काम करने वाले 8 वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स में किसी की मौत या तो किसी विस्फोट में हुई। नहीं तो फांसी लगाकर या समुद्र में डूब कर इनकी मौतें हुईं।
हरियाणा के राहुल शेहरावत की तरफ से दायर एक आरटीआई का 21 सितम्बर को विभाग की ओर से जवाब दिया गया। इसमें बताया गया कि साल 2009-13 दौरान न्यूक्लियर पॉवर कॉर्पोरेशन के 3 अन्य वैज्ञानिकों की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हई है। जिनमें से दो ने कथित तौर पर आत्महत्या की और एक की सड़क दुर्घटना में मौत हुई।
बीएआरसी, ट्रॉम्बे में कार्यरत सी-ग्रुप के 2 वैज्ञानिकों के शव 2010 में उनके घरों में फांसी पर लटके पाए गए। इसके अलावा इसी ग्रेड के तीसरे वैज्ञानिक का शव 2012 में रावतभाटा में स्थित उनके घर में पाया गया।
बीएआरसी के एक मामले में पुलिस ने दावा किया कि वैज्ञानिक ने लंबे समय से चल रही बीमारी के कारण आत्महत्या की। केवल यह मामला ही बंद हो चुका है।
जबकि अन्य मामलों में अभी भी जांच चल रही है। 2010 में दो रिसर्च फैलोस एक ट्रॉम्बे में बीएआरसी की केमेस्ट्री लैब में लगी रहस्यमय आग में मौत हुई। जबकि एक एफ ग्रेड का वैज्ञानिक अपने मुम्बई स्थित घर में कत्ल के बाद मृत पाया गया। ऐसा शक किया गया कि उनका गला रेता गया था। अभी तक कत्ल का आरोपी पकड़ा नहीं गया है।
आरआरसीएटी के एक डी-ग्रेड वैज्ञानिक ने भी कथित तौर पर आत्महत्या की। पुलिस यह केस भी बंद करने जा रही है। इसके अलावा कलपक्कम में काम करने वाले एक और वैज्ञानिक ने समुद्र में कूदकर जान दे दी। उसने 2013 में अपनी जिंदगी खत्म की। इस मामले में भी अभी तक जांच चल रही है।
इसके अलावा मुंबई के एक और वैज्ञानिक ने आत्महत्या की। पुलिस ने इसके पीछे का कारण व्यक्तिगत बताया है। इनके अलावा कर्नाटक के करवार की काली नदी में कूदकर भी एक वैज्ञानिक ने आत्महत्या की।
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