क्या आपको पता है पोस्टमॉर्टम रूम
के भीतर की सच्चाई क्या है। अगर नहीं, तो आईए हम आपको बतातें है। दरअसल,
पिछले कई वर्ष से पोस्टमॉर्टम का काम कर रहे अहमदाबाद के बाबूभाई सीतापारा
वाघेला ने कुछ ऐसे ही शवों के पोस्टमॉर्टम की डायरी तैयार की है। बाबूभाई
कहते हैं कि मैंने ऐसी लाशों का पोस्टमॉर्टम किया है, जिसे आम आदमी देख ले
तो गश खाकर जमीन पर गिर पड़े।
बाबूभाई ने
बताया कि राजकोट के पास पेडक इलाके के सूखे कुंए में एक व्यक्ति की लाश
पड़ी हुई थी। लाश लगभग 8 दिन पुरानी थी और इसमें कीड़े लग चुके थे। यह मेरा
पहला मामला था। पोस्टमार्टम की तो बात दूर, लाश देखने के बाद मैं कई दिनों
तक ठीक से खाना तक नहीं खा सका था। मैं जैसे ही खाना खाने बैठता, मेरी
आंखों के सामने वह तस्वीर आ जाती।
पुलिस यह लाश
एंबुलेंस द्वारा स्ट्रेचर पर रखकर लाई थी, जिसे सीधे ही पोस्टमार्टम रूम
में भेज दिया गया था। जब मैंने लाश के ऊपर से चादर हटाया तो देखा कि उसके
चारों तरफ इल्लियां रेंग रही थीं। इससे भी ज्यादा मेरे लिए डरावनी बात यह
थी कि यह सिर कटी लाश थी। सच कहूं तो पहली बार पोस्टमार्टम करने में मेरे
हाथ-पांव कांप रहे थे। मेरी जिंदगी का यह एक ऐसा वाकया है, जिसे मैं कभी
भुला नहीं सकता।
कुछ वर्ष पहले कच्छ से अहमदाबाद
जा रही लग्जरी बस की एक मिनी बस से दुर्घटना हो गई थी। दुर्घटना इतनी भयानक
थी कि मिनी बस में बैठे सभी 18 यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई थी। सभी
शवों को मोरबी से सिविल अस्पताल लाया गया। लेकिन इतने शवों को पोस्टमार्टम
रूम में रखना संभव नहीं था। इसलिए पोस्टमार्टम यार्ड में रखकर ही किया गया
था। एक के बाद एक 18 शवों के पोस्टमार्टम के बाद का नजारा इतना भयानक था
कि इसे शब्दों में बखान करना संभव ही नहीं।
बाबूभाई
कहते हैं कि इससे भी बुरी स्थिति तो हमारे लिए तब होती है, जब बच्चों का
पोस्टमार्टम करना होता है। तब मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आता है। मासूम
देहों पर छुरी-हथौड़े चलाने की स्थिति हमारे लिए सबसे ज्यादा दुखदायक होती
है। बाबूभाई वाघेला के पिता और दादा भी पोस्टमार्टम करने वाले स्वीपर थे।
आमतौर
पर पोस्टमार्टम रूम में हरेक स्वीपर की ड्युटी 8 घंटे की होती है, लेकिन
ऐसी स्थिति में उन्हें कई घंटों भी काम करना पड़ता है। कई बार तो ऐसा भी
मौका आता है कि स्वीपर की पोस्टमार्टम करने की इच्छा ही नहीं होती। एक
सेवानिवृत्त के मुताबिक, किसी भी स्वीपर के लिए सबसे भयानक स्थिति तब होती
है, जब 80 फीसदी जली लाश का पोस्टमार्टम करना होता है। इस समय शव के
हाथ-पैरों की हड्डियां स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही होती हैं, आंखें बाहर
निकल आती हैं और जुबान बाहर की ओर लटकी हुई होती है। इस तरह के शवों का
पोस्टमार्टम करने से पहले हम लोग शराब पी लेते हैं।
स्वीपर
वाघेला बताते हैं कि पानी में फूली हुई लाश पर नाइफ चलाते ही शरीर किसी
पटाखे की तरह फूटता है। अगर शव कई दिनों तक पानी में पड़ा रहा हो तो वह ऐसा
हो जाता है कि आप यह भी नहीं जान सकते कि वह किसी महिला की है या पुरुष
का। इसकी पहचान करने के लिए सबसे पहले प्राइवेट अंगों वाले हिस्सों का
पोस्टमार्टम करना होता है। कई बार शव इस कदर खराब हो चुके होते हैं कि पूरे
शरीर का पोस्टमार्टम करने के बाद भी यह पता नहीं चल पाता कि वह किसी महिला
का है या पुरुष का।
वाघेला बताते हैं कि एक बार
उनके पास कुंए में 3-4 दिनों तक पड़ी हुई लाश पोस्टमार्टम के लिए लाई गई।
लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी। हालांकि वह शव इसी इलाके के एक समृद्ध
परिवार की बहू की थी, जो पिछले 4-5 दिनों से लापता थी। इसलिए परिजन को शव
की शिनाख्त के लिए बुलाया गया। परिवार से काफी लोग आए थे, लेकिन कोई भी शव
को 4-5 सेकंड भी नहीं देख सका।
सभी ने घबराते हुए
तुरंत एक ही जवाब दिया कि यह उनकी बहू नहीं, जबकि वे गलत थे। परिजन को
महिला की साड़ी व एक-एक कर सारे गहने दिखाए गए, तब कहीं जाकर वे इस बात को
मानने के लिए तैयार हुए कि यह शव उनकी बहू का ही है।
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